قَالُوا يَا صَالِحُ قَدْ كُنْتَ فِينَا مَرْجُوًّا قَبْلَ هَٰذَا ۖ أَتَنْهَانَا أَنْ نَعْبُدَ مَا يَعْبُدُ آبَاؤُنَا وَإِنَّنَا لَفِي شَكٍّ مِمَّا تَدْعُونَا إِلَيْهِ مُرِيبٍ
फ़ारूक़ ख़ान & अहमद
उन्होंने कहा, "ऐ सालेह! इससे पहले तू हमारे बीच ऐसा व्यक्ति था जिससे बड़ी आशाएँ थीं। क्या तू हमें उनको पूजने से रोकता है जिनकी पूजा हमारे बाप-दादा करते रहे है? जिनकी ओर तू हमें बुला रहा है उसके विषय में तो हमें संदेह है जो हमें दुविधा में डाले हुए है।"
फ़ारूक़ ख़ान & नदवी
वह लोग कहने लगे ऐ सालेह इसके पहले तो तुमसे हमारी उम्मीदें वाबस्ता थी तो क्या अब तुम जिस चीज़ की परसतिश हमारे बाप दादा करते थे उसकी परसतिश से हमें रोकते हो और जिस दीन की तरफ तुम हमें बुलाते हो हम तो उसकी निस्बत ऐसे शक़ में पड़े हैं