وَجَعَلْنَا عَلَىٰ قُلُوبِهِمْ أَكِنَّةً أَنْ يَفْقَهُوهُ وَفِي آذَانِهِمْ وَقْرًا ۚ وَإِذَا ذَكَرْتَ رَبَّكَ فِي الْقُرْآنِ وَحْدَهُ وَلَّوْا عَلَىٰ أَدْبَارِهِمْ نُفُورًا
फ़ारूक़ ख़ान & अहमद
और उनके दिलों पर भी परदे डाल देते है कि वे समझ न सकें। और उनके कानों में बोझ (कि वे सुन न सकें) । और जब तुम क़ुरआन के माध्यम से अपने रब का वर्णन उसे अकेला बताते हुए करते हो तो वे नफ़रत से अपनी पीठ फेरकर चल देते है
फ़ारूक़ ख़ान & नदवी
और (गोया) हम उनके कानों में गरानी पैदा कर देते हैं कि न सुन सकें जब तुम क़ुरान में अपने परवरदिगार का तन्हा ज़िक्र करते हो तो कुफ्फार उलटे पावँ नफरत करके (तुम्हारे पास से) भाग खड़े होते हैं