أَوْ يَكُونَ لَكَ بَيْتٌ مِنْ زُخْرُفٍ أَوْ تَرْقَىٰ فِي السَّمَاءِ وَلَنْ نُؤْمِنَ لِرُقِيِّكَ حَتَّىٰ تُنَزِّلَ عَلَيْنَا كِتَابًا نَقْرَؤُهُ ۗ قُلْ سُبْحَانَ رَبِّي هَلْ كُنْتُ إِلَّا بَشَرًا رَسُولًا
फ़ारूक़ ख़ान & अहमद
या तुम्हारे लिए स्वर्ण-निर्मित एक घर हो जाए या तुम आकाश में चढ़ जाओ, और हम तुम्हारे चढ़ने को भी कदापि न मानेंगे, जब तक कि तुम हम पर एक किताब न उतार लाओ, जिसे हम पढ़ सकें।" कह दो, "महिमावान है मेरा रब! क्या मैं एक संदेश लानेवाला मनुष्य के सिवा कुछ और भी हूँ?"
फ़ारूक़ ख़ान & नदवी
और जब तक तुम हम पर ख़ुदा के यहाँ से एक किताब न नाज़िल करोगे कि हम उसे खुद पढ़ भी लें उस वक्त तक हम तुम्हारे (आसमान पर चढ़ने के भी) क़ायल न होगें (ऐ रसूल) तुम कह दो कि सुबहान अल्लाह मै एक आदमी (ख़ुदा के) रसूल के सिवा आख़िर और क्या हूँ