وَالَّذِينَ يُتَوَفَّوْنَ مِنْكُمْ وَيَذَرُونَ أَزْوَاجًا يَتَرَبَّصْنَ بِأَنْفُسِهِنَّ أَرْبَعَةَ أَشْهُرٍ وَعَشْرًا ۖ فَإِذَا بَلَغْنَ أَجَلَهُنَّ فَلَا جُنَاحَ عَلَيْكُمْ فِيمَا فَعَلْنَ فِي أَنْفُسِهِنَّ بِالْمَعْرُوفِ ۗ وَاللَّهُ بِمَا تَعْمَلُونَ خَبِيرٌ
फ़ारूक़ ख़ान & अहमद
और तुममें से जो लोग मर जाएँ और अपने पीछे पत्नियों छोड़ जाएँ, तो वे पत्नियों अपने-आपको चार महीने और दस दिन तक रोके रखें। फिर जब वे अपनी निर्धारित अवधि (इद्दत) को पहुँच जाएँ, तो सामान्य नियम के अनुसार वे अपने लिए जो कुछ करें, उसमें तुमपर कोई गुनाह नहीं। जो कुछ तुम करते हो, अल्लाह उसकी ख़बर रखता है
फ़ारूक़ ख़ान & नदवी
और तुममें से जो लोग बीवियाँ छोड़ के मर जाएँ तो ये औरतें चार महीने दस रोज़ (इद्दा भर) अपने को रोके (और दूसरा निकाह न करें) फिर जब (इद्दे की मुद्दत) पूरी कर ले तो शरीयत के मुताबिक़ जो कुछ अपने हक़ में करें इस बारे में तुम पर कोई इल्ज़ाम नहीं है और जो कुछ तुम करते हो ख़ुदा उस से ख़बरदार है