يَا أَيُّهَا الَّذِينَ آمَنُوا لَا تَكُونُوا كَالَّذِينَ كَفَرُوا وَقَالُوا لِإِخْوَانِهِمْ إِذَا ضَرَبُوا فِي الْأَرْضِ أَوْ كَانُوا غُزًّى لَوْ كَانُوا عِنْدَنَا مَا مَاتُوا وَمَا قُتِلُوا لِيَجْعَلَ اللَّهُ ذَٰلِكَ حَسْرَةً فِي قُلُوبِهِمْ ۗ وَاللَّهُ يُحْيِي وَيُمِيتُ ۗ وَاللَّهُ بِمَا تَعْمَلُونَ بَصِيرٌ
फ़ारूक़ ख़ान & अहमद
ऐ ईमान लानेवालो! उन लोगों की तरह न हो जाना जिन्होंने इनकार किया और अपने भाईयों के विषय में, जबकि वे सफ़र में गए हों या युद्ध में हो (और उनकी वहाँ मृत्यु हो जाए तो) कहते है, "यदि वे हमारे पास होते तो न मरते और न क़त्ल होते।" (ऐसी बातें तो इसलिए होती है) ताकि अल्लाह उनको उनके दिलों में घर करनेवाला पछतावा और सन्ताप बना दे। अल्लाह ही जीवन प्रदान करने और मृत्यु देनेवाला है। और तुम जो कुछ भी कर रहे हो वह अल्लाह की स्पष्ट में है
फ़ारूक़ ख़ान & नदवी
ऐ ईमानदारों उन लोगों के ऐसे न बनो जो काफ़िर हो गए भाई बन्द उनके परदेस में निकले हैं या जेहाद करने गए हैं (और वहॉ) मर (गए) तो उनके बारे में कहने लगे कि वह हमारे पास रहते तो न मरते ओर न मारे जाते (और ये इस वजह से कहते हैं) ताकि ख़ुदा (इस ख्याल को) उनके दिलों में (बाइसे) हसरत बना दे और (यूं तो) ख़ुदा ही जिलाता और मारता है और जो कुछ तुम करते हो ख़ुदा उसे देख रहा है