يَا أَيُّهَا الَّذِينَ آمَنُوا لَا يَحِلُّ لَكُمْ أَنْ تَرِثُوا النِّسَاءَ كَرْهًا ۖ وَلَا تَعْضُلُوهُنَّ لِتَذْهَبُوا بِبَعْضِ مَا آتَيْتُمُوهُنَّ إِلَّا أَنْ يَأْتِينَ بِفَاحِشَةٍ مُبَيِّنَةٍ ۚ وَعَاشِرُوهُنَّ بِالْمَعْرُوفِ ۚ فَإِنْ كَرِهْتُمُوهُنَّ فَعَسَىٰ أَنْ تَكْرَهُوا شَيْئًا وَيَجْعَلَ اللَّهُ فِيهِ خَيْرًا كَثِيرًا
फ़ारूक़ ख़ान & अहमद
ऐ ईमान लानेवालो! तुम्हारे लिए वैध नहीं कि स्त्रियों के माल के ज़बरदस्ती वारिस बन बैठो, और न यह वैध है कि उन्हें इसलिए रोको और तंग करो कि जो कुछ तुमने उन्हें दिया है, उसमें से कुछ ले उड़ो। परन्तु यदि वे खुले रूप में अशिष्ट कर्म कर बैठे तो दूसरी बात है। और उनके साथ भले तरीक़े से रहो-सहो। फिर यदि वे तुम्हें पसन्द न हों, तो सम्भव है कि एक चीज़ तुम्हें पसन्द न हो और अल्लाह उसमें बहुत कुछ भलाई रख दे
फ़ारूक़ ख़ान & नदवी
ऐ ईमानदारों तुमको ये जायज़ नहीं कि (अपने मुरिस की) औरतों से (निकाह कर) के (ख्वाह मा ख्वाह) ज़बरदस्ती वारिस बन जाओ और जो कुछ तुमने उन्हें (शौहर के तर्के से) दिया है उसमें से कुछ (आपस से कुछ वापस लेने की नीयत से) उन्हें दूसरे के साथ (निकाह करने से) न रोको हॉ जब वह खुल्लम खुल्ला कोई बदकारी करें तो अलबत्ता रोकने में (मज़ाएक़ा (हर्ज)नहीं) और बीवियों के साथ अच्छा सुलूक करते रहो और अगर तुम किसी वजह से उन्हें नापसन्द करो (तो भी सब्र करो क्योंकि) अजब नहीं कि किसी चीज़ को तुम नापसन्द करते हो और ख़ुदा तुम्हारे लिए उसमें बहुत बेहतरी कर दे
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