وَالَّذِينَ تَبَوَّءُوا الدَّارَ وَالْإِيمَانَ مِنْ قَبْلِهِمْ يُحِبُّونَ مَنْ هَاجَرَ إِلَيْهِمْ وَلَا يَجِدُونَ فِي صُدُورِهِمْ حَاجَةً مِمَّا أُوتُوا وَيُؤْثِرُونَ عَلَىٰ أَنْفُسِهِمْ وَلَوْ كَانَ بِهِمْ خَصَاصَةٌ ۚ وَمَنْ يُوقَ شُحَّ نَفْسِهِ فَأُولَٰئِكَ هُمُ الْمُفْلِحُونَ
फ़ारूक़ ख़ान & अहमद
और उनके लिए जो उनसे पहले ही से हिजरत के घर (मदीना) में ठिकाना बनाए हुए है और ईमान पर जमे हुए है, वे उनसे प्रेम करते है जो हिजरत करके उनके यहाँ आए है और जो कुछ भी उन्हें दिया गया उससे वे अपने सीनों में कोई खटक नहीं पाते और वे उन्हें अपने मुक़ाबले में प्राथमिकता देते है, यद्यपि अपनी जगह वे स्वयं मुहताज ही हों। और जो अपने मन के लोभ और कृपणता से बचा लिया जाए ऐसे लोग ही सफल है
फ़ारूक़ ख़ान & नदवी
जो लोग मोहाजेरीन से पहले (हिजरत के) घर (मदीना) में मुक़ीम हैं और ईमान में (मुसतक़िल) रहे और जो लोग हिजरत करके उनके पास आए उनसे मोहब्बत करते हैं और जो कुछ उनको मिला उसके लिए अपने दिलों में कुछ ग़रज़ नहीं पाते और अगरचे अपने ऊपर तंगी ही क्यों न हो दूसरों को अपने नफ्स पर तरजीह देते हैं और जो शख़्श अपने नफ्स की हिर्स से बचा लिया गया तो ऐसे ही लोग अपनी दिली मुरादें पाएँगे