يَا مَعْشَرَ الْجِنِّ وَالْإِنْسِ أَلَمْ يَأْتِكُمْ رُسُلٌ مِنْكُمْ يَقُصُّونَ عَلَيْكُمْ آيَاتِي وَيُنْذِرُونَكُمْ لِقَاءَ يَوْمِكُمْ هَٰذَا ۚ قَالُوا شَهِدْنَا عَلَىٰ أَنْفُسِنَا ۖ وَغَرَّتْهُمُ الْحَيَاةُ الدُّنْيَا وَشَهِدُوا عَلَىٰ أَنْفُسِهِمْ أَنَّهُمْ كَانُوا كَافِرِينَ
फ़ारूक़ ख़ान & अहमद
"ऐ जिन्नों और मनुष्यों के गिरोह! क्या तुम्हारे पास तुम्हीं में से रसूल नहीं आए थे, जो तुम्हें मेरी आयतें सुनाते और इस दिन के पेश आने से तुम्हें डराते थे?" वे कहेंगे, "क्यों नहीं! (रसूल तो आए थे) हम स्वयं अपने विरुद्ध गवाह है।" उन्हें तो सांसारिक जीवन ने धोखे में रखा। मगर अब वे स्वयं अपने विरुद्ध गवाही देने लगे कि वे इनकार करनेवाले थे
फ़ारूक़ ख़ान & नदवी
(फिर हम पूछेंगे कि क्यों) ऐ गिरोह जिन व इन्स क्या तुम्हारे पास तुम ही में के पैग़म्बर नहीं आए जो तुम तुमसे हमारी आयतें बयान करें और तुम्हें तुम्हारे उस रोज़ (क़यामत) के पेश आने से डराएँ वह सब अर्ज करेंगे (बेशक आए थे) हम ख़ुद अपने ऊपर आप अपने (ख़िलाफ) गवाही देते हैं (वाकई) उनको दुनिया की (चन्द रोज़) ज़िन्दगी ने उन्हें अंधेरे में डाल रखा और उन लोगों ने अपने ख़िलाफ आप गवाही दीं