وَلَقَدْ جِئْتُمُونَا فُرَادَىٰ كَمَا خَلَقْنَاكُمْ أَوَّلَ مَرَّةٍ وَتَرَكْتُمْ مَا خَوَّلْنَاكُمْ وَرَاءَ ظُهُورِكُمْ ۖ وَمَا نَرَىٰ مَعَكُمْ شُفَعَاءَكُمُ الَّذِينَ زَعَمْتُمْ أَنَّهُمْ فِيكُمْ شُرَكَاءُ ۚ لَقَدْ تَقَطَّعَ بَيْنَكُمْ وَضَلَّ عَنْكُمْ مَا كُنْتُمْ تَزْعُمُونَ
फ़ारूक़ ख़ान & अहमद
और निश्चय ही तुम उसी प्रकार एक-एक करके हमारे पास आ गए, जिस प्रकार हमने तुम्हें पहली बार पैदा किया था। और जो कुछ हमने तुम्हें दे रखा था, उसे अपने पीछे छोड़ आए और हम तुम्हारे साथ तुम्हारे उन सिफ़ारिशियों को भी नहीं देख रहे हैं, जिनके विषय में तुम दावे से कहते थे, "वे तुम्हारे मामले में शरीक है।" तुम्हारे पारस्परिक सम्बन्ध टूट चुके है और वे सब तुमसे गुम होकर रह गए, जो दावे तुम किया करते थे
फ़ारूक़ ख़ान & नदवी
और आख़िर तुम हमारे पास इसी तरह तन्हा आए (ना) जिस तरह हमने तुम को पहली बार पैदा किया था और जो (माल व औलाद) हमने तुमको दिया था वह सब अपने पस्त पुश्त (पीछे) छोड़ आए और तुम्हारे साथ तुम्हारे उन सिफारिश करने वालों को भी नहीं देखते जिन को तुम ख्याल करते थे कि वह तुम्हारी (परवरिश वगैरह) मै (हमारे) साझेदार है अब तो तुम्हारे बाहरी ताल्लुक़ात मनक़तआ (ख़त्म) हो गए और जो कुछ ख्याल करते थे वह सब तुम से ग़ायब हो गए
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