فَتَوَلَّىٰ عَنْهُمْ وَقَالَ يَا قَوْمِ لَقَدْ أَبْلَغْتُكُمْ رِسَالَةَ رَبِّي وَنَصَحْتُ لَكُمْ وَلَٰكِنْ لَا تُحِبُّونَ النَّاصِحِينَ
फ़ारूक़ ख़ान & अहमद
फिर वह यह कहता हुआ उनके यहाँ से फिरा, "ऐ मेरी क़ौम के लोगों! मैं तो तुम्हें अपने रब का संदेश पहुँचा चुका और मैंने तुम्हारा हित चाहा। परन्तु तुम्हें अपने हितैषी पसन्द ही नहीं आते।"
फ़ारूक़ ख़ान & नदवी
उसके बाद सालेह उनसे टल गए और (उनसे मुख़ातिब होकर) कहा मेरी क़ौम (आह) मैनें तो अपने परवरदिगार के पैग़ाम तुम तक पहुचा दिए थे और तुम्हारे ख़ैरख्वाही की थी (और ऊँच नीच समझा दिया था) मगर अफसोस तुम (ख़ैरख्वाह) समझाने वालों को अपना दोस्त ही नहीं समझते
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