بَلْ يُرِيدُ كُلُّ امْرِئٍ مِنْهُمْ أَنْ يُؤْتَىٰ صُحُفًا مُنَشَّرَةً
फ़ारूक़ ख़ान & अहमद
नहीं, बल्कि उनमें से प्रत्येक व्यक्ति चाहता है कि उसे खुली किताबें दी जाएँ
फ़ारूक़ ख़ान & नदवी
असल ये है कि उनमें से हर शख़्श इसका मुतमइनी है कि उसे खुली हुई (आसमानी) किताबें अता की जाएँ
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